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हे सजनी / अनिल कुमार झा

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फागुन करे बेईमानी हे सजनी,
लाल पियर रंग धानी हे सजनी।

तोरोॅ ही आशा में दिन-रात बीतै
नाम लेने यहाँ मोन आँख रीतै,
बनै लेॅ नै पावौं ज्ञानी हे सजनी
फागुन करे बेईमानी हे सजनी।

टेसू के फूल से वनमो हंसै छै
प्रेमो रो आगिन मन में बसै छै,
कैन्हेॅ लेल्हेॅ हेनोॅ प्रण ठानी हे सजनी
फागुन करे बेईमानी हे सजनी।

आबोॅ आबोॅ हे, अब फागुन जैतै
तोरा बिन दिन रात कुछु नै सुहैतै,
नै करोॅ आबेॅ मनमानी हे सजनी
फागुन करे बेईमानी हे सजनी।

बड़ी रे जतन सें एकरा बोलैलों
काम धाम मन प्राण विधना भुलेलौं,
फागुन हांसै दिलजानी हे सजनी
फागुन करै बेईमानी हे सजनी।