हे हरि कवन उपाय करूँ मैं।
काम क्रोध मद लोभ सतावत जम के त्रास डरूँ मैं।
माया मोह ग्रसे निसि वासर कइसे धीर धरूँ मैं।
जहँ लागि नाता नेह जगत के इनसे प्रीत हरूँ मैं।
एक आस विसवास तुम्हारो तेरा ही ध्यान धरूँ मैं।
द्विज महेन्द्र को पार उतारो तेरे ही आस करूँ मैं।