हे हो बाबू सतीश / ब्रह्मदेव कुमार
हे हो बाबू सतीश, तोरोॅ कैह्नों करम
हे हो बाबू सतीश, तोरोॅ कैह्नों धरम।
कि अैय्यो तोरोॅ कुटिया मेॅ बहार आबै छै॥
अंग प्रदेशोॅ केरोॅ, हिन्दी-अंगिका केरोॅ।
सब्भे, प्रेमोॅ रोॅ भुखलोॅ, साहित्यकार आबै छै॥
जेना आमों गाछीं फूटै, गज-गज मंजर।
आरो मदमाछी-भौरा, भरमार आबै छै॥
बहै कल-कल, छल-छल, साहित्य-सरिता।
जैमेॅ संगम के अविरल धार बहै छै॥
ज्ञान-गंगा ऐना, उपटै छै यहाँ।
सौंन-भादोॅ मेॅ जेना कि बाढ़ आबै छै॥
ढोॅह उठै छै, लहरोॅ पेॅ लहर लहरै।
जैसेॅ ज्ञान केरोॅ मोती, के भंडार आबै छै॥
कि कहानी-कविता, कि गीत-गजल।
कि यादोॅ केरोॅ झुमार-बौछार आबै छै॥
प्रेमोॅ सेॅ पुरलोॅ, भावोॅ सेॅ भरलोॅ।
ऐन्हों, मानवता सेॅ जुड़लोॅ, संस्कार आबै छै॥
तोरोॅ होय के एहसास, होय छै दिल मेॅ विश्वास।
तोरोॅ, आशीषोॅ सेॅ भरलोॅ, जे फुहार आबै छै॥
हम्मेॅ होय छीं गदगद, प्रेम-रस सेॅ सरगद
जेना अनहद नादोॅ, के गुँजार आबै छै॥
हे हो बाबू सतीश, तोरा शत-शत नमन।
तोरा शत-शत नमन, शत-अनन्त नमन॥