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हो भाय जी / ब्रह्मदेव कुमार

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कैह्नें लागै छै एŸोॅ जाड़ हो भाय जी।
कैह्ने लागै छै ऐŸो जाड़॥

रातियें सेॅ करै छै, घन्नें कुहासोॅ
कनकन्नों सर-सर, हवा रोॅ झकासोॅ।
कँपाय दै छै देहोॅ रोॅ हाड़ हो भाय जी
कैह्ने लागै छै ऐŸो जाड़॥

ठण्डोॅ सेॅ सुरजौं, आँखो नै खोलै
ललकी किरणियाँ, पाँखो नै खोलै।
रौदीं देखाबै नै लाड़ हो भाय जी
कैह्ने लागै छै ऐŸो जाड़॥

चिड़ियाँ चुरगुन नै चुनमुन करै छै
दाना चुनै लेॅ नै खुन-खुन करै छै।
जेना देखी बड़का बिलाड़ हो भाय जी
कैह्ने लागै छै ऐŸो जाड़॥

घासोॅ रोॅ फुनगी पेॅ, शीत थरथराय हो
सहजन रोॅ फूल-फूली, गेलै ओझराय हो।
ठंढाय गेलै सौसे डंगाल हो भाय जी
कैह्ने लागै छै ऐŸो जाड़॥


गैय्यो-बछड़बोॅ नै बोलै-हकाबै
गल्ला रोॅ घंटी नै टुनटुन बजाबै।
मारै नै केकरोॅ लताड़ हो भाय जी
कैह्ने लागै छै ऐŸो जाड़॥

मैय्यो छै सुतली रहली छै काँपी
अंचरातर नुनवां आरो नुनिया केॅ झाँपी।
ठोकी केॅ बज्जड़ केबाड़ हो भाय जी
कैह्ने लागै छै ऐŸो जाड़॥

जाड़ोॅ के बड़की, रातें सताबै
लपकी दुल्हनियाँ के आँख लोरियाबै।
पिया बिना जिनगी पहाड़ हो भाय जी
कैह्ने लागै छै ऐŸो जाड़॥

करिहोॅ विचार तोंही, हे भगवान हो
एŸो लाचार कैह्नें, तोरोॅ संतान हो।
हुनियें लगैतै बेड़ा पार हो भाय जी
कैह्ने लागै छै ऐŸो जाड़॥