भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हौसला भी रखती हूँ / संतोष श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बाँध रक्खा है क़सम देकर
उम्र के पड़ावों ने
वरना अपना दरो दीवार से
रिश्ता क्या है

जहाँ न सुबह हो, न शाम ढले
ठहर गए हैं जहाँ
हर एक पल वहीं के वहीं
वहाँ सफ़र से, रवानी से
रिश्ता क्या है

जब्त रखती हूँ
मगर हौसला भी रखती हूँ
बदल गए हैं जहाँ
मायने रिवायत के
वहाँ लकीर पर चलने से
रिश्ता क्या है