Last modified on 5 फ़रवरी 2008, at 01:01

...... / धूमिल

"लोकतन्त्र के

इस अमानवीय संकट के समय

कविताओं के ज़रिए

मैं भारतीय

वामपंथ के चरित्र को

भ्रष्ट होने से बचा सकूंगा ।" एकमात्र इसी विचार

से मैं रचना करता हूँ अन्यथा यह इतना दुस्साध्य

और कष्टप्रद है कि कोई भी व्यक्ति

अकेला होकर मरना पसन्द करेगा

बनिस्बत इसमें आकर

एक सार्वजनिक और क्रमिक

मौत पाने के ।