भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
132 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
कई रोज नूं मुलक मशहूर होसी चोरी यारी जो ऐब कुआरियां नूं
जिनां बाण है नचने कुदने दी रखे कौन रंनां हैं सयारियां नूं
उस पा भुलाउड़ा ठगया ए कम पहुंचया बहुत खुआरियां नूं
जदों चाक उधाल लै जाए नढी तदों झूरसो बाजियां हारियां नूं
वारस शाह मियां जिनां लाइयां नी सोई जाणदे डारियां यारियां नूं
शब्दार्थ
<references/>