भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
248 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
महांदेव थीं जोग दा पंथ बनया खरी कठन है जोग मुहिंम मियां
कौड़ा बक बका सवाद है जोग संदा जेही घोटके पीवनी निंम मियां
जहां सुन समाध दी मंडली है तहां जोड़ना है निंम झिंम मियां
तहां भसम लगाइके भसम होणा पेश जाए नाहीं गबर ते डिंम<ref>पाखंड</ref> मियां
शब्दार्थ
<references/>