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348 / हीर / वारिस शाह
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फकर शेर दा आखदे हैन बुरका भेत फकर दा मूल ना फोलीए नी
दुध साफ है वेखना आशकां दा शकर विच पयाजना घोलीए नी
घरों खरे जो हस के आन दीजे लईए दुआ ते मिठड़ा बोलीए नी
लइए आख चढ़ायके वध पैसा पर तोल तों घट ना तोलीए नी
शब्दार्थ
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