भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
388 / हीर / वारिस शाह
Kavita Kosh से
असीं सबर करके चुप हो बैठे बहुत औखियां एह फकीरियां ने
नजर तले क्यों लिआवें तूं कन्न पाटे जैंदे हसदे ना जंजीनियां ने
जेहड़े दरशनी हुंडड़ी<ref>हुंडी</ref> वाच बैठे सब चिठियां उन्हां ने चीरियां<ref>खत, परवाना</ref> ने
तुसीं करो हया कुआरियो नी अजे दुध दियां दंदियां खीवियां ने
कही चंदरी लगी है आन मथे अखी भरदियां भौन भंबीरियां ने
मैं तां मार तलटियां<ref>तली मारना</ref> पट सटां मेरी उंगली उंगली पीरियां ने
वारस शाह फौजदार दे मारने नूं सैना सारियां वेख कशमीरियां ने
शब्दार्थ
<references/>