भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

447 / हीर / वारिस शाह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सहती खंड मलाई दा थाल भरया चा कपड़े विच लुकाया ए
जेहा विच नमाज विशवास<ref>वहम</ref> गैबों अजराईल<ref>शैतान</ref> बना लै आया ए
उते पंज रुपये सू रोक रखे जा फकर ते फेरड़ा पाया ए
असीं रूहां बहिश्तियां बैठयां नूं ताओ दोजखे दा किथों आया ए
तलब मींह दी वगया आन भुखड़ यारो आखरी दौर हुण आया ए
सहती बन्ह के हथ सलाम कता अगों मूल जवाब ना आया ए
आमल<ref>शैतान</ref> चोर ते चैधरी जट हाकम समां होर भी रब्ब विखाया ए

शब्दार्थ
<references/>