भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अंकुर-1 / इब्बार रब्बी

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:27, 9 नवम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अंकुर जब सिर उठाता है
ज़मीन की छत फोड़ गिराता है
वह जब अंधेरे में अंगड़ाता है
मिट्टी का कलेजा फट जाता है
हरी छतरियों की तन जाती है कतार
छापामारों के दस्ते सज जाते हैं
पाँत के पाँत
नई हो या पुरानी
वह हर ज़मीन काटता है
हरा सिर हिलाता है
नन्हा धड़ तानता है
अंकुर आशा का रंग जमाता है।

रचनाकाल : 02.02.1979