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अंक में ले लो / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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301
'अंक में ले लो,
थकान सफर की'-
नदिया बोली ।
302
तैरके सिन्धु
पा ही लेंगे प्यार के
दो-चार बिन्दु ।
303
आपका आना
हम सबके साथ
घर विहँसा
304
अम्बर- क्यारी
खरगोश बादल
दुबकें, दौड़ें ।
305
बजे नगाड़े
अम्बर में मेघों के
खुले अखाड़े ।
306
काले बदल
नभ के नयनों में
आँजें काजल।
307
शम्पा मुस्काए
मेघों के वन में ये
किसे बुलाए !
308
नभ को रौंदें
पागल हाथी बन
धूसर मेघा ।
309
धरती भीगी
घन घट ढो लाए
तरु नहाए।
310
मौर सजाए
इन्द्रधनुष भाल
जलद राजा।
311
जीवन-साँझ
अनुताप क्यों करे
दीप जलाएँ ।
312
सिन्दूरी साँझ
ले मादक मुस्कान
पन्थ निहारे।
313
आकुल नैन
अम्बर पट खिंचे,
गुलाबी डोरे।
314
हो गई साँझ
रिश्ते, नाते व प्यार
हुए फरार ।
315
बन्धन टूटे
बरसों रहे साथी
साँझ में छूटे।