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अंगड़ाई / ज़िया फतेहाबादी

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गुदगुदी दिल में हुई,
वलवले जाग उठे,
आरजूओं के शगूफे फूटे,
उफक ए यास से पैदा हुई उम्मीद की बेताब किरण,
शब्नामिस्तान ए तमन्ना में हर एक सिमत उजाला फैला,
खोल दी देर से सोए हुए जज़्बात ने आँख
खिरमन ए दिल में फिर इक आग सी भड़की चमकी,
इक तड़प एक शरार -

इस पे है अंजुमन ए दहर की गरमी का मदार,
खून रग रग में रवां,
इस से है हरकत में आलम का निज़ाम !