Last modified on 10 जुलाई 2018, at 13:03

अंजान साए पीछे मैं चलता चला गया / मोहित नेगी मुंतज़िर

Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:03, 10 जुलाई 2018 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अंजान साए पीछे मैं चलता चला गया।
जीवन मिरा तभी से बदलता चला गया।

मुझसे कहा किसी ने तपो निखरो सोने सा
मेहनत की तब से आग में जलता चला गया।

किसने कहा के अपने पन में कोई दम नहीं
अपनों के प्यार में ही मैं गलता चला गया।

आये थे दुख कभी मिरा लेने को जायज़ा
बस मेरा होश तब से सम्भलता चला गया।

सीखी जब एक पेड़ ने झुक कर विनम्रता
वो पेड़ उस समय से ही फलता चला गया।