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अंधेरी गली में मेरा घर रहा है / देवी नागरानी
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अंधेरी गली में मेरा घर रहा है
जहां तेल-बाती बिना इक दिया है.
जो रौशन मेरी आरजू का दिया है
मेरे साथ वो मेरी मां की दुआ है.
अजब है, उसी के तले है अंधेरा
दिया हर तरफ़ रौशनी बांटता है.
यहां मैं भी मेहमान हूं और तू भी
यहां तेरा क्या है, यहां मेरा क्या है.
खुली आंख में खाहिशों का समुंदर
न अंजाम जिनका कोई जानता है.
जहां देख पाई न अपनी ख़ुदी मैं
न जाने वहीं मेरा सर क्यों झुका है.
तुझे वो कहां ‘देवी’ बाहर मिलेगा
धड़कते हुए दिल के अंदर खुदा है.