भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अग्रसर है आजकल असर नयौ-नयौ / सालिम शुजा अन्सारी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:53, 7 अक्टूबर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सालिम शुजा अन्सारी |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अग्रसर है आजकल असर नयौ-नयौ,
रहगुजर नई-नई सफर नयौ-नयौ॥

इक पुरानी ठौर ही सो टौर बन गई,
अब हमन कों चाँहियै खँडर नयौ-नयौ॥

चार दिन ठहर तौ जाउ काढ दिंगे हम,
मन में आज ही बसौ है डर नयौ-नयौ॥

हौलें-हौलें होयगौ भलाई कौ असर,
आज ही पियौ है यै जहर नयौ-नयौ॥

जैसें ही लड़ो सों बाप की नजर मिलीं,
है गयौ दुपट्टा तर-ब-तर नयौ-नयौ॥

सासरौ, सजन, ससुर, नये सगे'न के संग,
लग रह्यौ है बाप कौ हू घर नयौ-नयौ॥

नयी नवेली दुलहनी कौ चित्त है उदास,
मन में उठ रह्यौ है इक भँवर नयौ-नयौ॥

'सालिम' एक दिन चमक उतर ही जायगी,
और कै दिना रहैगौ घर नयौ-नयौ||