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अछूत (पवित्र) होरी / अछूतानन्दजी 'हरिहर'

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होरी खेलौ अछूतौ भाई, छुतैरों से छोर छोड़ाई. टेक
इनके लोभ फंसे जो भाई, उन्नति कबहूँ न पाई.
धोवत धीमर नाई धोती, जूँठनि रहे उठाई.
कहौ क्या पदवी पाई, भरम भ्रम-भूत भगाई॥
जिनको नीच म्लेच्छ द्विज कहते, नफरत बहुत कराई.
उनको ऊँचे ओहदे पदवी, देत हृदय में डराई.
सुविद्या बुद्धि बड़ाई, लखौ मुसलिम ईसाई॥
अंग्रेजन कहँ भंगी बतावत, बकत बहुत बौराई.
बनत आप उनके चपरासी, झाड़त बूटन धाई.
कहाँ तब गई ठकुराई, अछूतन करत सफाई॥
मुलकी हक सब अलग बँटावौ, करहु संगठन भाई.
देखहु मुसलिम भाइन 'हरिहर' युनिवर्सिटी खुलवाई.
कालिजहु करत पढ़ाई, अछूतन देहु चेताई॥