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अतुकान्त किसी क़ैदी ने / रमेश रंजक

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चू रहे,
निबौरी के साथ के पनीले दिन !
शायर ने खोली होंगी यादें
         बाँध गया होगा लेकिन
                             चू रहे...

रह-रह कर टूटा होगा तनाव
कौंधी होगी बिजली
भीतर अतुकान्त किसी क़ैदी ने
छेड़ी होगी कजली
लिपट गए होंगे फैले-फैले
                     दिन-से-दिन

शायर ने खोली होंगी यादें
        बाँध गया होगा लेकिन
चू रहे,
निबौरी के साथ के पनीले दिन !
                            चू रहे...