भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अधिकार / रामदेव भावुक

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:45, 8 जून 2016 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

फैक्ट्री मे हिस्सा छै हमरो, अधिकार मील पर हमरो छै

बेदखल करओ नै खेत सें हक सरकार फसील पर हमरो छै

अब मजदूरी पर मजबूरी मे
हमरा नै मरना जीना छै
रंगीन नफा के शीशमहल मे
हमरो खून-पसीना छै

सागर मे हिस्सा छै हमरो, अधिकार झील पर हमरो छै

पूँजी तोहर मेहनत हम्मर
तौलओ नै एक तराजू पर
मेहनत पर छै जग के गुमान
सब के छै भरोसा बाजू पर

उत्पादन में हिस्सा छै हमरो, अधिकार तसील पर हमरो छै

मेहनतकशमजदूर किसान हम
लड़ि कए आपन हक लेबै
बेजान मशीन के जान हमे
दुनिया के नया सबक देबै

नफ्फा मे हिस्सा छै हमरो, अधिकार मशीन पर हमरो छै

गरीब-गरीब सब जाति एक
दुनिया के गरीब सब एक समान
हमर जाति नै सिक्ख ईसाई
हम हिन्दू नै मुसलमान

बलिदान मे हिस्सा छै हमरो, अरमान सलीब पर हमरो छै

जुलम तॅ केवल छिकै जुल्म
तों उर्दू मे उलझाबॅ नै
बात करओ नै अंगरेजी मे
हिन्दी मे समझाबॅ नै

सूरज मे हिस्सा छै हमरो, अधिकार अनिल पर हमरो छै