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"अनोखी बन्दूक / आलोक कुमार मिश्रा" के अवतरणों में अंतर
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एक बन्दूक बनाऊँ ऐसा
निकले जिससे प्रेम की गोली
जिसको लगे वही फिर बोले
एक-दूजे से मीठी बोली
फिर न होगी कहीं लड़ाई
सभी करेंगे सबकी भलाई
हम बच्चों संग खेलेंगे सब
गुल्ली-डण्डा, छुपन-छुपाई ।