भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अपदार्थ / कुबेरनाथ राय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुबेरनाथ राय |अनुवादक= |संग्रह=कं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

11:09, 18 सितम्बर 2019 के समय का अवतरण

तो क्या हुआ यदि मैं जगत में रह गया अपदार्थ
राष्ट्र के, संसार के, परिवार के कुछ काम आया मैं नहीं।
हर्ज क्या यदि कुछ भी न पाया स्वार्थ या परमार्थ
कर्म का, संघर्ष का, जयगान का अभिमान कर पाया नहीं।

रेह ऊपर रेत में यदि कामना के बीज मेरे
अर्थ में बोये गये, रिक्त मुट्ठी रह गया मैं,
निरर्थक श्रम सींकरों में बह गई परिकल्पनायें
मृत हुई संभावना, किस्मत रही आँखें तरेरे।

फिर भी तुम्हारा परस मिलता जब कभी
प्रात के उल्लास में, सांझ के उच्छ्वास में
सरल शिशु के रुदन में, वृद्ध के विश्वास में
वृषभ के हुंकार में, पहचान पाता जब कभी
यह सब तुम्हीं हो, शेष सब है व्यर्थ
अपदार्थ,
तब न मैं रह जाता अकिंचन दीन या अपदार्थ।

[1962 ]