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अपने रहे न घने नीम के साए / रमेश तैलंग

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धान पराया हुआ, हल्दी परायी,
चढ़ गयी नीलामी पर अमराई
ऐसी विदेसिया ने करी चतुराई.

अपने रहे न घने नीम के साए
गमलों में कांटे ही कांटे उगाये,
पछुवा के रंग में रंगी पुरवाई.
ऐसी विदेसिया ने करी चतुराई.

पानी तो बिक गया बीच बाजारी,
धूप-हवा की कल आएगी बारी,
सौदागरों ने है मंडी लगाईं.
ऐसी विदेसिया ने करी चतुराई.

रोज दिखाके नए सपने सलोने,
हाथों में दे दिए मुर्दा खिलोने,
राम दुहाई मेरे राम दुहाई.
ऐसी विदेसिया ने करी चतुराई.