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"अपने वश में कुछ नहीं / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

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46
तुम बिन बैरी रात है,तुम बिन व्यर्थ विहान।
+
फूलों की मुस्कान -सा, हो तेरा संसार।
छुवन तुम्हारी जब मिले ,पूरे तब अरमान।।
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रोम -रोम सुरभित रहे,बरसे निर्मल प्यार।।
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47
अपने आँगन में चला , कैसा यह अभियान।
+
विनती की भगवान से,मन है बहुत अधीर।
बन्द नैन पढ़ने लगे ,गीता वेद,कुरान ॥
+
आँचल में दे दो मुझे,प्रियवर की सब पीर।।
33
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48
मेरी झोली में भरो,चाहे जग के  शूल ।
+
अपने वश में कुछ नहीं, विधना का यह खेल।
प्रिय के पथ में तुम सदा, बोते रहना फूल।
+
कौन बाट में छूटता,कौन करेगा मेल।।
34
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49
तेरे मन से जो जुड़े,मेरे मन के तार।
+
फूल और खुशबू  रहें, निशदिन बहुत करीब।
रहना होगा साथ ले, साँसों की पतवार।।
+
शूलों को  होता कहाँ,ऐसा प्यार  नसीब ॥
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50
नुक़्ताचीनी में गए , सभी सुखद दिन- रैन।
+
मिट जाएँगी दूरियाँ, होगा दुख का नाश।
हाथ लगा कुछ भी नहीं ,खोकर मन का चैन।
+
आलिंगन में बाँधकर,कस लेना भुजपाश।
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51
पाया हमने सेर भर,खोया मन भर प्यार।
+
तुम प्राणों की प्यास हो,नम आँखों का नूर।
पूँजी निकली हाथ से,सब कुछ बिका उधार।।
+
पल भर कर पाता नहीं,तुमको मन से दूर।
37
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52
खोकर ,ठोकर जब लगी,तभी हुआ यह भान।
+
जब, जहाँ और जिस घड़ी,तुम होते बेचैन।
आ पहुँचा था द्वार पर,यम लेकर फरमान।।
+
दूर यहाँ परदेस में, भर -भर आते नैन।।
38
+
53
टूट चुके इस गाँव के, अब सारे दस्तूर
+
खुशी देख पाते नहीं,इस दुनिया के लोग
दर्पण में दिखते नहीं, अपने  ही नासूर ॥
+
जलने का इनको लगा,युगों युगों से रोग।।
39
+
54
रूप आज,कल है नहीं,आती जाती छाँव।
+
हम तुम कुछ जाने नहीं,कितनी गहरी धार।
हमको पूरा चाहिए,तेरे मन का गाँव।।
+
गहन प्यार की नाव पर,चले सिन्धु के पार।
40
+
55
छाया दी जिस पेड़ ने, काटी उसकी डाल ।
+
तेरे दुख में जागते,कटती जाती रात।
बार-बार फिर पूछते, ‘अब तो हो खुशहाल’॥
+
तपता माथा चूमते,हुआ अचानक प्रात।।
41
+
56
पता नहीं कितने भरे , हमने मन में खोट।
+
कुछ मैंने माँगा नहीं,बस दो  बूँदें प्यार।
मरहम जब तक ढूँढते, फिर लग जाती चोट ॥
+
बदले में दे दो मुझे, अपने दुख का भार।।
42
+
57
गले लगे फिर रो पड़े,दोनों ही इक साथ।
+
अपने के आगे बही ,मन की सारी पीर।
मन में डर था बस यही,छूट न जाए साथ।।
+
हँसी खो गई भीड़ में,मन पर खिंची लकीर
43
+
58
  अपनों का दुख देखकर,मन को मिले न चैन।
+
हम तो खाली हाथ हैं, कुछ ना बचा जनाब।
इंतज़ार में दिन कटे,कटे दुआ में रैन ।।
+
कल जब हम होंगे नहीं, देगा कौन हिसाब ॥
44
+
59
अँसुवन जल से सींचकर,पूजे आँगन-द्वार।
+
जितना हम झुकते गए,उतनी पड़ती मार।
परदेसी आया नहीं,खोले रहे किवार।
+
हम  सदैव बेशर्म थे, कैसे जाते हार ।
45
+
60
खोजे से मिलता नहीं,हमको अपना गाँव।
+
फूलों- सा मन दे दिया,फिर छिड़के अंगार।
हर लेती हर धूप को,जहाँ प्यार की छाँव।
+
तेरी तू ही जानता,क्या लीला करतार।।
  
 
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04:36, 5 मई 2019 का अवतरण


46
फूलों की मुस्कान -सा, हो तेरा संसार।
रोम -रोम सुरभित रहे,बरसे निर्मल प्यार।।
47
विनती की भगवान से,मन है बहुत अधीर।
आँचल में दे दो मुझे,प्रियवर की सब पीर।।
48
अपने वश में कुछ नहीं, विधना का यह खेल।
कौन बाट में छूटता,कौन करेगा मेल।।
49
फूल और खुशबू रहें, निशदिन बहुत करीब।
शूलों को होता कहाँ,ऐसा प्यार नसीब ॥
50
मिट जाएँगी दूरियाँ, होगा दुख का नाश।
आलिंगन में बाँधकर,कस लेना भुजपाश।
51
तुम प्राणों की प्यास हो,नम आँखों का नूर।
पल भर कर पाता नहीं,तुमको मन से दूर।
52
जब, जहाँ और जिस घड़ी,तुम होते बेचैन।
दूर यहाँ परदेस में, भर -भर आते नैन।।
53
खुशी देख पाते नहीं,इस दुनिया के लोग ।
जलने का इनको लगा,युगों युगों से रोग।।
54
हम तुम कुछ जाने नहीं,कितनी गहरी धार।
गहन प्यार की नाव पर,चले सिन्धु के पार।
55
तेरे दुख में जागते,कटती जाती रात।
तपता माथा चूमते,हुआ अचानक प्रात।।
56
कुछ मैंने माँगा नहीं,बस दो बूँदें प्यार।
बदले में दे दो मुझे, अपने दुख का भार।।
57
अपने के आगे बही ,मन की सारी पीर।
हँसी खो गई भीड़ में,मन पर खिंची लकीर
58
हम तो खाली हाथ हैं, कुछ ना बचा जनाब।
कल जब हम होंगे नहीं, देगा कौन हिसाब ॥
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जितना हम झुकते गए,उतनी पड़ती मार।
हम सदैव बेशर्म थे, कैसे जाते हार ।
60
फूलों- सा मन दे दिया,फिर छिड़के अंगार।
तेरी तू ही जानता,क्या लीला करतार।।