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अप्प दीपो भव / तथागत बुद्ध 10 / कुमार रवींद्र

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सब कुछ था सहज हुआ
कैसा वह
       पल भर में

मसलन
आकाश-क्षितिज-धरती
सब एक हुए
अन्तरिक्ष सिमट गये
साँसों की टेक हुए

महासिन्धु उमड़ा
या देह बही
         निर्झर में

खिला कमल कहीं एक
ख़ुशबू है सभी ओर
एक शंख बजा कहीं
सुर व्यापा ओर-छोर

और वह उड़ान नई
कैसी है
     पंछी के पंख-पर में

सारे संवाद हुए
शब्द रहे अनबोले
लगा कि आकाशों ने
द्वार सभी थे खोले

सभी ओर
लगा उगीं कोपलें थीं
         सूने पतझर में