भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अप्प दीपो भव / यशोधरा 4 / कुमार रवींद्र

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:57, 5 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=अ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रात कटी - सुबह हुई
         समाचार आया है

राहुल को दाय मिला -
वह भी कुलहीन हुआ
महिमा है बुद्ध की
पिंजड़े से उड़ा सुआ

यशोधरा के भीतर
           सन्नाटा छाया है

पूरी छत घेर रहा
एक घना बादल है
आँगन लग रहा उसे
जला हुआ जंगल है

अंतहीन धुआँ घिरा
          देह में समाया है

बिजुरी है कौंध रही
बाहर भी - भीतर भी
जलविहीन आँखें हैं
वैसा ही पोखर भी

अचरज है
नेहभरी बदली का साया है