भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अबखायां री पोटळी / सुरेन्द्र डी सोनी

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:10, 12 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरेन्द्र डी सोनी |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मिंदर, देवरा, बरत, उजमणां

जाणैं कांईं-काईं
रचै-बसै
प्यारी थारै हिरदै मैं-

भोत ठीक
कै थूं
जकी नै म्हैं बावळी कैवूं
म्हारी अकल री
आं अबखायां नैं
सजा‘र पूजा रै थाल मैं
ईं घर नैं
राखै भरयो-पूरो
थांरो ओ ई रूप
म्हनैं
नित नवीं अबखायां नैं
ओढ़‘र चालण जोगो राखै
अर बुद्धिजीवियां री भीड़ मैं
न्यारो दीखणैं रा
सांगोपांग ओसर देवै
पण थूं
पूजा रो थाळ लियां
सदा ई
मिनखां बीच मिनखां जिसी
अर म्हैं
लियां अबखायां री पोटळी
करतो खंडण-मंडण
दूजां री बातं रा
अर
म्हारी जाण मैं
तोड़तो समाज रा जेवड़ा
न्यारो हो‘र भी
न्यारो नीं लागूं।