भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अबरी के बार बकस मोरे साहेब / दरिया साहेब

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:42, 21 अगस्त 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दरिया साहेब }} {{KKCatPad}} {{KKCatBhojpuriRachna}} <poem> अब...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अबरी के बार बकस मोरे साहेब। जनम-जनम कै चेरि हे।।
चरन कमल मैं हृदय लगाइब। कपट कागज सब फाड़ि हे।।
मैं अबला किछुओ नहीं जानौं। परपंचन के साथ हे।।
पिया मिलन बेरी इन्ह मोरा रोकल। तब जीव भयल अनाथ हे।।
जब दिल में हम निहचे जानल। सूझि परल हम फंद हे।।
खूलल दृष्टि दिया मनि लेसल। मानहुँ सरद के चंद हे।।
कह दरिया दरसन सुख उपजल। दुख-सुख दूरि बहाय हे।।