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अब्दुल मियाँ / संजय कुमार शांडिल्य

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अब्दुल मियाँ के इस देश की
अर्थव्यवस्था
दुनिया की तीसरी होगी
२०३५ तक
कोई शताब्दी के बीस वर्ष
उछाल देता है हवा में
अब्दुल मियाँ के घर में
अगर कैलेण्डर हुआ
तो उसमें उसका भविष्य
एक पखवाड़ा है
दरहकीकत अब्दुल मियाँ
दिन भर के दुआ-सलाम में
जितने लफ़्ज खर्च करता है
उतने रूपये अपनी
गिरहस्थी पर नहीं करता
कोई शताब्दी के बीस वर्ष
के ख़्वाब रखता है
उसकी आँखों में
अब्दुल मियाँ सरौते से
सुपारी-सा काटता है
चौबीस घण्टे
अब्दुल मियाँ तम्बाकू की
डिबिया में भरता है
अपने दिन-रात
इस दुनिया के मानचित्र में
अब्दुल मियाँ का कारोबार
एक फैला हुआ जूट का
बोरा है
वही अमेरिका उसका
वही उसका चीन-जापान
कोई अब्दुल मियाँ की
इस दुनिया को
एक बोरे में भरना चाहता है
वह जानना चाहता है
आने वाले बीस सालों की
दुनिया के बारे में
अब्दुल मियाँ मुझ से पूछ कर
अपने कल के लिए
डरना चाहता है।