भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अभी तो आप ही हाइल है रास्ता शब का / अभिषेक शुक्ला

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:53, 11 नवम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अभिषेक शुक्ला }} {{KKCatGhazal}} <poem> अभी तो आप...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अभी तो आप ही हाइल है रास्ता शब का
क़रीब आए तो देखेंगे हौसला शब का

चली तो आई थी कुछ दूर साथ साथ मिरे
फिर इस के बाद ख़ुदा जाने क्या हुआ शब का

मिरे ख़याल के वहशत-कदे में आते ही
जुनूँ की नोक से फूटा है आबला शब का

सहर की पहली किरन ने उसे बिखेर दिया
मुझे समेटने आयाथा जब ख़ुदा शब का

जमीं पे आ के सितारों ने ये कहा मुझ से
तिरे क़रीब से गुज़रा है क़ाफ़िला शब का

सहर का लम्स मिरी ज़िंदगी बढ़ा देता
मगर गिराँ था बहुत मुझ पे काटना शब का

कभी कभी तो ये वहशत भी हम पे गुज़री है
कि दिल के साथ ही देखा है डूबना शब का

चटख़ उठी है रग-ए-जाँ तो ये ख़याल आया
किसी की याद से जुड़ता है सिलसिला शब का