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अम्बर के आँगन में / एक बूँद हम / मनोज जैन 'मधुर'

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मेघों ने अमृत घट
छलकाया अम्बर से
बॅंूदों ने चूम लिये
धरती के गाल

परदेशी मौसम न
अम्बर के ऑंगन में
टॉंग दिये मेघों के
श्यामल परिधान
वातायन वातायन
गंध घुली सौंधी-सी
दक्खिणी हवाओं ने
छेड़ी है तान

घूम रहे सूरज के
घोड़े औ‘ ऐरावत
फैल गया क्षितिजों तक
सतरंगी जाल

धरती ने गोदे हैं
धानी के गोदने
जादू-सा डाल गया
अन्तस का मोद
सावन की झड़ियों ने
पनघट की मॉंग भरी
नदिया की भर दी है।
सूनी-सी गोद

उतर रहे हंस-यान
नभ थामे पंखों से
धरती को पहनाने
मेघों की माल