भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आं सांसां रो आणो-जाणो देखो / सांवर दइया
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:57, 12 अक्टूबर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सांवर दइया |संग्रह=आ सदी मिजळी मरै /...' के साथ नया पन्ना बनाया)
आं सांसां रो आणो-जाणो देखो
कुण जाणै कठै है ठिकाणो देखो
दिनूगै तो मुळकै हो भोर सागै
अबै क्यूं हुयो औ रीसाणो देखो
आभै री बात आंख में अमूझगी
अबै पींजरै पड़्या दाणा देखो
हाल चाल पूछ्या तो बोल्यो इंयां
लो औ पड़्यो धुखतो छाणो देखो
घर फूंकणिया री जात नुंवी कठै
कबीर आळो सागी घरणो देखो