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आचमन / राखी सिंह

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भयभीत करने लगी है
निकटता
स्नेहिल सम्बोधनों से
सशंकित होने लगी हूँ
आदरसूचक शब्द
व्यंग्य प्रतीत होते हैं

बाहर न निकलने के प्रण के साथ
झोंक रखा है मैने स्वयं को
अनुभवों की भभकती अगिन में

और पूछती हूँ-
जल, तुम कहाँ हो?