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आदमी जैसे हो कुछ अजगरों के बीच / प्रकाश बादल

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आदमी जैसे हो कुछ अजगरों के बीच। चंदन सी ज़िंदगी है विषधरों के बीच।

ये, वो, मैं, तू हैं सब तमाशबीन, लहूलुहान सिसकियां हैं खंजरों के बीच।

शहर के मज़हब से नावाकिफ़ अंजान वो, बातें प्यार की करे कुछ सरफिरों के बीच।

भरी सभा में द्रौपदी-सा चीख़े मेरा देश, कब आओगे कृष्ण इन कायरों के बीच।

ख़ुद ही अब बताएंगे कि हम ख़ुदा नहीं, आज गुफ़्तगू हुई ये पत्थरों के बीच।

आंसू इसलिये आंख से छलकाता नहीं मैं, कुछ मछलियां भी रहतीं हैं सागरों की बीच।