भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आप चांदनी / राकेश खंडेलवाल

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:05, 15 अप्रैल 2008 का अवतरण (आप चाँदनी / राकेश खंडेलवाल moved to आप चांदनी / राकेश खंडेलवाल)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चाँदनी रात में आप को ढूँढने,
चाँदनी अपने घर से निकल के चली
एक नीहारिका से पता पूछते पूछते
थी भटकती रही हर गली
आपको देखा तो यों लगा है उसे
देखती अपनी परछाई को झील में
और असमंजसों में घिरी रह गई,
ऐसा लगता स्वयं से स्वयं ही छली

चाँदनी ओढ़ कर, फूल की गंध ले,
देह पाई किसी एक अहसास ने
कल्पना, स्वप्न की वीथियों से निकल
चित्र आँखों में कोई लगी आँजने
आप नज़रों में मेरी समाये लगा,
सर्दियों की दुपहरी में छत पर खड़ी,
मखमली धूप, सहसा उतर सीढ़ियाँ
आ खड़ी हो गई है सामने

शब्द में ढल कभी गुनगुनाने लगा,
तो कभी होंठ पर ही लरजता रहा
यज्ञ का मंत्र बन, बादलों की पकड़
कर कलाई गगन में विचरता रहा
ये महालय में काशी के बन आरती के
सुरों के नये कोई पर्याय सा
नाम पल पल तुम्हारा ओ प्राणे-सुधा,
आ शिराओं में मेरी खनकता रहा