Last modified on 13 जून 2018, at 17:30

आव्हान / शिशु पाल सिंह 'शिशु'

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:30, 13 जून 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिशु पाल सिंह 'शिशु' |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पधरो हलधर के सांवले! अन्नपूर्णा के अक्षत वर!
सगाई रधिया की है, इसी वर्ष के धनखर पर निर्भर।
पधारो वरुणदेव के केतु! पुरंदर की भेंटें ले कर,
बिना अरघों के सूखे पड़े, खेत की मिट्टी के शंकर।

पधारो नील-देश के पथिक! लिये रसधारें प्‍यारों की
शिखरिणी के मुरझाये प्राण जोहते बाट फुहारों की।
पधारो नभ-गंगा की लहर! उमंगें ले उद्धारों की,
बुलाती तुम्‍हें दहकतीं हुई चितायें सगर कुमारों की।

पधारो सिन्‍धु-सुता के बन्‍धु! मोतियों से भरकर झोली,
कुटी के निर्धन राम-रहीम तुम्‍हारे ही हैं हमजोली।
पधारो तप से ऊँचे उठे, परम पावन पानी वाले;
तपोवन के तन में पड़ गये, तपन से तप-तप कर छाले।

तुम्‍हारे आवाहन के लिये, साँस पुरवैया भरती है।
विनत हो आत्‍म-निवेदन लिये, दंडवत् धरती करती है॥