भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आ गया जाड़ा / शिवचरण चौहान

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:08, 6 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवचरण चौहान |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खोलकर खिड़की किवाड़ा
आ गया जाड़ा!
दाँत पढ़ते हैं पहाड़ा
आ गया जाड़ा!

टोप कानों पर चढ़ा
सीने कसा स्वेटर,
अंग सारे ढके फिर भी
काँपते थर-थर।
ताल में आया सिंघाड़ा
भा गया जाड़ा!

दाँत उग आए-
लगा अब काटने पानी,
अब नहाने से बहुत
डरने लगी नानी।
पीटता आया नगाड़ा-
छा गया जाड़ा!