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इस रेखांकित समय में / मनोज श्रीवास्तव

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इस रेखांकित समय में...

इस रेखांकित समय में
जबकि टी०वी० समाज
हमारे समाज के साथ
घुल-मिल रहा है,
लोगबाग़ फ़िज़ूल ही
असफ़ल मानसन के खि़लाफ़
बग़ावत कर रहे हैं
और नीली कोठी में दुबके
सूरज के आगे
पानी को लेकर
आंदोलन और प्रदर्शन कर रहे हैं।

मानसून की दग़ाबाज़ी से
कोई प्यासा कैसे मर सकता है
जबकि नगरपालिका के सौजन्य से
पानी के टैंकर आए-दिन
मोहल्लों में प्यास से मुक्ति की
गंगा बहा रहे हैं,

यह बात अलग है कि
औरतें पानी के बजाय
कास्मेटिक क्रीमों से
स्नान कर अघा रही हैं।

बेशक!
इतना सार्थक दौर चल रहा है कि
चार्ल्स डार्विन सरेआम भौंक रहा है,
काहिल बिहारी मज़दूर
और भुक्खड़ उडि़या किसान
ख़ुदकुशियों को आबाद रख
नाकाबिल, नामर्द और कमज़ोरों की
तादात घटाते जा रहे हैं
और यह कितनी अच्छी ख़बर है कि
शहर के नामचीन अस्पताल
स्वस्थ बाशिंदों के कारण
दीवालिया होते जा रहे हैं

जबकि फ़ाइव स्टार होटलों की संख्या
लगातार बढ़ती जा रही है
क्योंकि फुटपाथ के
कोकीनखोर रह चुके भिखारी
उन शाही होटलों की शान बढ़ा रहे हैं।

हम समय से आगे चल रहे हैं
और हमारी आर्थिक विकास-दर
उम्मीद की दुधारू गाय बनती जा रही है
जबकि कमबख़्त मीडिया
कीचड़ उछालने से बाज़ नहीं आ रहा है
और अतरौली में
एक हयादार औरत के
भूखों मरने की ख़बर छाप रहा है।

कितना ओछा आचरण है कि
अमिताभ बच्चन्न द्वारा 15 करोड़ के
इनकम टैक्स भरे जाने को
ग़ुमख़बरी के डस्टबिन में डाल रहा है
जबकि आयकर विभाग
बाबुओं के घन-खाए बटुए से
आयकर चिचोर रहा है।

क्या ज़रूरत है
इस खुशनुमा दौर में
खंगाली-गई ख़बरें छापने की--
कि डोम, रोहिताश्व के कफ़न में से
मुर्दाघाटनुमा क़ौम को ढँकने के लिए
एक टुकड़ा माँग रहा है
जबकि आवाम का हरिशचंद्र खुद को
महाजन यानी हुक़ूमत के हाथों गि़रवी रखकर
अपनी लुगाई से धंधा करा रहा है
और ऐय्याश ज़िंदग़ी बसर कर रहा है?