भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"उनका हरेक बयान हुआ / गौतम राजरिशी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गौतम राजरिशी |संग्रह= }} <poem>उनका हर एक बयान हुआ दं...)
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=  
 
|संग्रह=  
 
}}
 
}}
<poem>उनका हर एक बयान हुआ
+
<poem>उनका एक बयान हुआ
दंगे का सब सामान हुआ
+
दंगे का सामान हुआ
  
नक्शे पर जो शह्‍र खड़ा है
+
कातिल का जब भेद खुला
देख जमीं पे बियाबान हुआ
+
हाकिम मेहरबान हुआ
  
झोंपड़ ही तो चंद जले हैं
+
कोना-कोना चमके घर
ऐसा भी क्या तूफ़ान हुआ
+
वो जबसे मेहमान हुआ
  
कातिल का जब से भेद खुला
+
बस्ती ही तो एक जली
हाकिम क्यूं मेहरबान हुआ
+
ऐसा क्या तूफ़ान हुआ
  
कोना-कोना घर का चमके
+
प्यास बुझी जब सूरज की
है जब से वो मेहमान हुआ
+
दरिया इक मैदान हुआ
  
आँखों में सनम की देख जरा
+
उनका एक इशारा भी
कत्ल का मेरे उन्वान हुआ
+
रब का ज्यूँ फ़रमान हुआ
  
एक हरी वर्दी जो पहनी
+
जब से हरी वर्दी पहनी
दिल मेरा हिन्दुस्तान हुआ</poem>
+
ये दिल हिन्दुस्तान हुआ
 +
</poem>

21:39, 3 मार्च 2010 का अवतरण

उनका एक बयान हुआ
दंगे का सामान हुआ

कातिल का जब भेद खुला
हाकिम मेहरबान हुआ

कोना-कोना चमके घर
वो जबसे मेहमान हुआ

बस्ती ही तो एक जली
ऐसा क्या तूफ़ान हुआ

प्यास बुझी जब सूरज की
दरिया इक मैदान हुआ

उनका एक इशारा भी
रब का ज्यूँ फ़रमान हुआ

जब से हरी वर्दी पहनी
ये दिल हिन्दुस्तान हुआ