Last modified on 5 अप्रैल 2010, at 02:45

उभयचर-1 / गीत चतुर्वेदी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:45, 5 अप्रैल 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गीत चतुर्वेदी }} {{KKCatKavita‎}} <poem> '''चेस्वाव मिवोश और विष…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

चेस्वाव मिवोश और विष्णु खरे के लिए

दुख भरा था तुममें दुख से भरा यह जग था
इस जग का तुम मानते नहीं थे ख़ुद को फिर भी दुख था जो तुम्हें अपना मानता था
और इस जग को क्या फिकिर कि तुम उसे अपना मानो न मानो
सो दुख था बस जिसे तुम्हें मानना था अपना दुख से भरे इस जग में
सुख को छूना दरअसल नष्ट होना था नष्ट होने का सुख भी इतना प्रतिबंधित था
कि कठोर दंडों का प्रावधान था कि किसी भी वस्तु को पाने की इच्छा जाती रहे
इससे हुआ यह कि जो पास था उसका मोल जान लिया इससे
अपमान जो झेले थे उनको भूल जाने का संकोच नष्ट हुआ