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उम्र भर खाक़ ही छाना किये वीराने की / गुलाब खंडेलवाल

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उम्र भर खाक़ ही छाना किये वीराने की

ली नहीं उसने खबर भी कभी दीवाने की


शुक्र है, आप न लाये कभी प्याला मुझ तक

मेरी आदत है बुरी, पी के बहक जाने की


दिल में एक हूक-सी उठती है आइने को देख

क्या से क्या हो गए गर्दिश में हम ज़माने की


देखते-देखते आँखें चुरा गयी है बहार

याद भर रह गयी फूलों के मुस्कुराने की


जिसने भेजा था घड़ी भर तुझे खिलने को,गुलाब!

फ़िक्र क्या, जो वही आवाज़ दे घर आने की