Last modified on 5 जुलाई 2020, at 15:31

एक गीत मीतक नाम / किसलय कृष्ण

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:31, 5 जुलाई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=किसलय कृष्ण |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कोशीक कछेर ठाढ़ हम, किछु गुनगुना रहल छी।
उजड़ल सन ई गाम केर खिस्सा सुना रहल छी।

लोक लेल बहबैत नोर, सुनसान ई धरती बनल,
सोन उगलैत खेत सब, किए आइ परती बनल,
परिचय एकर हेरा गेलइ, अनजान एक ख्वाबमे,
चोरौलक दिल दिल्ली एकर, घाम बहै पंजाबमे,

सोचि किछु एहने व्यथा, हम माथा धुना रहल छी।
उजड़ल सन ई गाम केर खिस्सा सुना रहल छी।

तोड़ि देलक एकर पोर पोर, आबिकैं शहरीकरण,
ओढ़ि लेलक संतान सभ, नव्यता केर आवरण,
जाति-धरममे बँटि चुकल सभ गाम।टोल, चौक छै,
ई देखि मंडन डीह केर शुग्गा सेहो आइ बौक छै,

किसलय अतीत हाथमे लए झुनझुना रहल छी।
उजड़ल सन ई गाम केर खिस्सा सुना रहल छी।