भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक सवाल / वीरा

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:15, 3 जून 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरा |संग्रह=उतना ही हरा भरा / वीरा }} तुम क्यों हर बार अ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम क्यों

हर बार

अपनी मुट्ठी में

भींच लेते हो

अपने फेफड़ों की

पीली-सी साँस?

क्या तुम

हरे पत्तों की

झूमती हवा के सामने

अपनी हथेली

खुली नहीं

रख सकते?


(रचनाकाल : 1978)