भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ए कनिया ! / चन्द्रमणि

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:05, 23 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रमणि |संग्रह=रहिजो हमरे गाम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ए कनिया जखने देलियै
घोघ तऽर सँ हुलकी
अहाँ बाजू ने बाजू
देखि गेलौं हम बुलकी।

इजोरिया नीक लगैये
मेघ सन घोघ ने तानू
उघारू बदन चानकें
कने तऽ हमरो मानू
अहाँकेर नैन मारलक तानि कों ढमे सुलफी। अहाँ.....

लचकिते डाँरक गतिसँ
जुलुम कऽ दैये पायल
कतेक उत्साही मनकें
तुरत कऽ दैये घायल
अहाँकेर चालि देखिकऽ मोन मारैये दुलकी। अहाँ....

अहाँ छी धवन चाननी
कतऽ हम कारी कारी
अहाँ तऽ मृगनैनी छी
आ‘ हम कनडेरिये ताकी
जनैछी हम अरूआयल ओल अहाँ की कुलफी। अहाँ....