भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
करते हैं तकरार मज़े में रहते हैं / राज़िक़ अंसारी
Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:34, 14 जून 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राज़िक़ अंसारी }} {{KKCatGhazal}} <poem>करते है...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
करते हैं तकरार मज़े में रहते हैं
फिर भी हम सब यार मज़े में रहते हैं
हिजरत करने वालों को मालूम नहीं
हम पुल के इस पार मज़े में रहते हैं
बाज़ू वालों को दुख है तो बस ये है
लोग पस ए दीवार मज़े में रहते हैं
पतझड़ हो या हरियाली का मौसम हो
हम जैसे किरदार मज़े में रहते हैं
आस पास की बस्ती वालों से कह दो
करते हैं जो प्यार मज़े में रहते हैं