भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

करम सबई हैं कारे उनके / महेश कटारे सुगम

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:46, 25 दिसम्बर 2014 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

करम सबई हैं कारे उनके
लग रये हैं जैकारे उनके

सबरे गुण्डा चोर लुटेरे
हैं आँखन के तारे उनके

भौत भूभरा मूतत फिर रये
सँगै रैवे वारे उनके

जित्ते चमचा बने फिरत्ते
हो गए वारे न्यारे उनके

सुगम पुलस के ऊँचे अफ़सर
बने फिरत रखवारे उनके