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"करो भोर का अभिनन्दन / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

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मत उदास हो मेरे मन
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सुखमय हो सबका जीवन!
  
'''“करो भोर का अभिनन्दन'''<br>
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आँसू पोंछो, हँस देना
 
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धूल झाड़कर चल देना।
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’<br>
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उठते –गिरते हर पथिक को
मत उदास हो मेरे मन <br>
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सिन्दूरी हो गया गगन।
बस आगे है चन्दन-वन ।<br>
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दमक उठा हर घर-आँगन।
बीती रात ,अँधेरा बीता<br>
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करते हैं उजियारे वन्दन ।<br>
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मुस्काएगा यह जीवन ।<br>
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सिन्दूरी हो गया गगन ।<br>
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दमक उठा हर घर-आँगन ।<br>
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00:04, 27 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण

मत उदास हो मेरे मन
करो भोर का अभिनन्दन!
काँटों का वन पार किया
बस आगे है चन्दन-वन।
बीती रात, अँधेरा बीता
करते हैं उजियारे वन्दन।
सुखमय हो सबका जीवन!

आँसू पोंछो, हँस देना
धूल झाड़कर चल देना।
उठते –गिरते हर पथिक को
कदम-कदम पर बल देना।
मुस्काएगा यह जीवन।
कलरव गूँजा तरुओं पर
नभ से उतरी भोर-किरन।
जल में, थल में, रंग भरे
सिन्दूरी हो गया गगन।
दमक उठा हर घर-आँगन।