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कर्त्ता / शब्द प्रकाश / धरनीदास

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कर्त्ता किया सो हो रहा, कर्त्ता करे सो होय।
धरनी करनी चीतवै, सो मति समझै कोय॥1॥

कर्त्ता को अस्थूल नहि, कर्म कल्पना काम।
धरनी सबमें रम रहा, ताते कहिये राम॥2॥

कर्त्ता की इच्छा भई, तहि कियो विस्तार।
सो पुनि सकल सकेलिया, धरनी कियो पुकार॥3॥

ब्रह्मा विष्णु महेश मुनि, धरनी दस अवतार।
कर्त्ता सबके ऊपरै, औ सबहूते पार॥4॥

धरनी कर्त्ता वो करै, माटी मिटै बहार।
चाहे तो छिन मैहं करै, वाहूते अधिकार॥5॥

कर्त्ता होता बहुत युग, आया आपहि माँहि।
धरनी शून समाधि में, हद बेहद कछु नाहि॥6॥

कर्त्ता सबको मूल है, औ सब ही को देव।
कर्त्ता राम को नाम है, जो चाहे सो लेव॥7॥

आदि अन्त मध्ये कहै, युग युग कर्त्ता राम।
धरनी सांचे कहत हैं, सन्तन को विश्राम॥8॥

धरनी सबके हृदय बस, कर्त्ता को निज नाम।
द्रव्य दया..., भूलि परै सो ठाम॥9॥

कर्त्ता रामहि को भजो, बार बढ़ नर नारि।
परिहरि आशा और को, धरनी कहै पुकारि॥10॥

कुल ऊँचो ऊँचो महल, परम सुन्दरी वाम।
धिग जीवन धरनी कहै, भजै न कर्त्ता राम॥11॥

कर्त्ताको सुमिरै नहीं, करै कोटि व्रत दान।
निगम साधि धरनी कहै, मुक्ति न मिलै निदान॥12॥

जाको जँह विश्वास है, ताको तँह विश्राम।
धरनि दास को आसरो, केवल कर्त्ता राम॥13॥

चित्रगुप्त औ धर्म ध्वज, सकल कला यम राय।
धरनी सबै कृपालु जो, कर्त्ता राम सहाय॥14॥

धरनी वोहित बोझिले, जँ लाँ माल मताय।
कर्त्ता पार उतारि है, तू मति कबै डराय॥15॥

कर्त्ता राता कहु मता, साधु को जो येह।
धरनी धरि लेहु सार मत, करि लेहु सारथ देह॥16॥

धरनी वरनी सकै नहि, कर्त्ता को व्यवहार।
भवजल सूखो सहज ही, कहां वार कंह पार॥17॥

धरनी निज धर धरो, सो सब कर्त्ता नांहि।
निराधार और अधर है, कर्त्ता कहिये ताहि॥18॥

धरनी कहि आवै नहीं, कर्त्ता की करतूति।
परमातम पहरो करै, रहिये आतम सूति॥19॥