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काँटों की बस्ती फूलों की, खु़शबू से तर है / डी. एम. मिश्र

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काँटों की बस्ती फूलों की, खु़शबू से तर है
दिल ये हमारा है कि तुम्हारी यादों का घर है।

जाने कितना गहरा रिश्ता आँखों का दिल सेे
आँसू इन ऑखों तक आया कितना चलकर है।

अपनों से ही लोग यहाँ उम्मीदें करते हैं
क्या बोयें , क्या काटें खेत हमारा बंजर है।

दुश्मन तो दुश्मन हैं अपने घात लगाये हैं
तूफ़ानों से अधिक भँवर से कश्ती को डर है।

भरे-भरे मेघों को छूकर पंछी लौटे जब
तब पोखर की क़ीमत समझे जो धरती पर है।