भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कारे सबरे होत बिकारे / ईसुरी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:43, 1 अप्रैल 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=बुन्देली |रचनाकार=ईसुरी |संग्रह= }} {{KKC...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कारे सबरे होत बिकारे,
जितने ई रंग बारे।
कारे नाँग सफाँ देखत के,
काटत प्रान निकारे।
कारे भमर रहत कमलन पै,
ले पराग गुंजारें।
कारे दगावाज हैं सजनी,
ई रंग से हम हारे।
ईसुर कारे खकल खात हैं,
जिहरन जात उतारे।